महापुरुषों की प्रतिमा रंग-रोगन को तरस रहे
पुरन वर्मा :- रायपुर/ तिल्दा नेवरा शहर कहो या ग्रामीणअंचल विकास के नाम पर हालात बदहाल नजर आते हैं शहरो में राजनीतिक के चलते दे दिए जाते हैं ध्यान बता दे कि गाँव के चौक-चौराहों पर बने महापुरुषों की प्रतिमाएं अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही होती हैं।रखरखाव के अभाव में प्रतिमाएं छिन्न-भिन्न नजर आते हैं वही कही-कही देखने को मिलते हैं कि प्रतिमाएं पर धूल की कई परतें जम गए होते हैं, ज्ञात हो कि साफ-सफाई तभी होती है जब कोई राष्ट्रीय त्योहार सिर पर होता हो लेकिन यहाँ तो इस प्रतिमा को देखने से प्रतित होते हैं की इस ओर किसी का ध्यान ही नही जाता हैं न तो प्रशासन की नजर इस ओर जाती है और न ही कोई स्वयंसेवी संस्था दिलचस्पी लेती है बात कर रहे हैं तिल्दा नेवरा ब्लॉक के ग्राम चिचोली का जो कि ग्राम तराशिव के अंतिम छोर गौरखेडा जाने का मार्ग में ही बने स्वतंत्रता सेनानी वीरांगना श्री रानी लक्ष्मी बाई की प्रतिमा जो की अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही हैं कहे जाए तो तिल्दा से खरोरा रायपुर इसी रास्ते से बड़े-बड़े सरकारी अफसरों राजनेताओं का आना जाना रहता हैं किंतु इस ओर ध्यान केन्द्रित करना उचित नही समझ रहे हैं। इसी तरह कुछ मिल दूरी पर ग्राम चिचोली के मेन सड़क से ही लगे बाबा साहब बी आर अम्बेडकर की भी प्रतिमा स्थापित हैं परंतु इन प्रतिमाओं पर किसी की नजर नही पढ़ रहा हैं व अपनी दुर्दशा पर बदहाल नजर आ रहे हैं।न जानें इन महापुरुषों ने कितनी यातनाएं सह कर हमें स्वतंत्र भारत भेंट किया साथ ही समाज को नई दिशा दिए। बात करें जनप्रतिनिधयों की तो वे अपने मे ही फुर्सत नही व गाँव की विकास के नाम पर दिखावा फूल खिलाने में फुर्सत नही होते हैं,देखें जाए तो अंचल के जनप्रतिनिधि लाखों रुपये खर्च करके पद की दावेदारी करते हैं इन्ही लाखों रुपये किए गए खर्च को निकाले के लिए विकास की गंगा उल्टा मोड़ ले लेता हैं व विकास का फूल मुर्झा हुआ प्रतीत होते हैं ग्राम के जनप्रतिनिधियों का हाल ग्राम मे कदम रखते ही ग्रामीणों में चर्चा का विषय रहता हैं। वही हमारे देश में तो शहीदों की मूर्तियों को लेकर भी सियासत होती रही है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर में नेताओं,सेनानियों,महापुरुषों की मूर्तियां लगायी ही क्यों जाती हैं। इसलिए कि आम लोग रास्ते चौराहे से गुजरते हुए प्रतिमाओं को नमन करें, उनके दिखाए रास्ते पर चलने की कोशिश करें और प्रेरित हों।लेकिन ऐसा होता ही नहीं है। ऐसा होता तो कम से कम इन महापुरुषों की प्रतिमाएं अपनी हालत पे बदहाल नजर नही आते।न तो मूर्तियां तोड़ी जा रही होतीं,न मुंह पर कालिख पोती जा रही होती और न ही सियासत हो रही होती वही इस महापुरुषों की प्रतिमाओं को जवाबदारों द्वारा अनदेखा कर दिया जाता हैं।